लेखनी कहानी -06-Dec-2022 कायदे में नहीं रहना है
कायदे में अब मुझे नहीं रहना है
उन्मुक्त दरिया की तरह बहना है
खोलकर दरीचे उड़ने लगी हूं
उमंगों के सपने बुनने लगी हूं
कंवल जैसी खिलने लगी हूं
स्वतंत्र अस्तित्व जीने लगी हूं
रूढियों के सींखचों में नहीं रहना है
उन्मुक्त दरिया की तरह बहना है
लक्ष्मण रेखा तो पहले ही लांघ चुकी थी
अग्नि परीक्षा में हर बार पास हो चुकी थी
भरी सभा में अपमान का घूंट पी चुकी थी
मर मरकर सैकड़ों बार जीवित हो चुकी थी
अब और अपमान नहीं सहना है
उन्मुक्त दरिया की तरह बहना है
मैं अबला नहीं हूं, दिखा दूंगी
बेबस लाचार नहीं, बता दूंगी
मुझे कमतर मत समझना लोगो
मैं दुर्गा हूं, नाकों चने चबवा दूंगी
इस जग से बस यही कहना है
उन्मुक्त दरिया की तरह बहना है
श्री हरि
6.12.22
Prbhat kumar
07-Dec-2022 11:43 AM
बहुत खूब
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
07-Dec-2022 04:24 PM
धन्यवाद जी
Reply
Gunjan Kamal
07-Dec-2022 08:55 AM
शानदार
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
07-Dec-2022 04:24 PM
धन्यवाद मैम
Reply
Varsha_Upadhyay
06-Dec-2022 07:54 PM
बेहतरीन
Reply
Hari Shanker Goyal "Hari"
07-Dec-2022 07:21 AM
धन्यवाद जी
Reply